गरीबी क्यों है ? /गरीबी देश मैं पूंजी निर्माण एवं गरीबी का दुष्चक्र ?
पूंजी निर्माण एवं गरीबी का दुष्चक्र
प्रशन : गरीबी के दुष्चक्र से आप क्या समझते हैं! एक अल्पविकसित देश
में पूंजी निर्माण में यह कठिनाई कैसे उत्पन्न करता है! ?
(अथवा) निर्धनता के दुष्चक्र से आप क्या समझते हैं!
इसके कारणों से स्पष्ट कीजिए ?
गरीबी का दुष्चक्र अल्पविकसित राष्ट्र में पूंजी का आभाव पाया जाता
है! जिसके कारण अर्थव्यवस्था में ऐसी गतिविधियों को संचालित करन संभव नहीं हो पाता
है! जिससे की अर्थव्यवस्था को गरीबी के दुष्चक्र से उबारा जा सके विकासशील राष्ट्र
सामान्यत निर्धन होते हैं! तथा ऐसे राष्टो में गरीबी के चिरस्थाई बने रहने की
प्रवृत्ति पाई जाती है! जो इस बात का प्रमाण है! कि किसी गरीब राष्ट्र की गरीबी का
मुख्य कारण गरीबी होना है!
किसी राष्ट्र के गरीब होने के कारण उसमें होने वाली गरीबी को प्रोफेसर नकर्स
तथा उनके अर्थशास्त्रियों ने इस तथ्य को गरीबी के दुष्चक्र के नाम से संबोधित किया
है! चक्र से अभिप्राय उस वृत्तीय संबंध से है! जिसके परिणाम की अलग अलग व्याख्या
करना संभव नहीं है!
परिभाषा
प्रोफेसर नकर्स के शब्दों में निर्धनता का दुष्चक्र विभिन्न तत्व में वृत्तीय
संबंधों का घातक है! जो एक दूसरे से मिलकर इस प्रकार की क्रिया तथा प्रक्रिया करते
हैं! कि गरीब देश गरीबी के जाल में जकड़ा रहता है!
गरीबी के दुष्चक्र की व्याख्या
गरीबी के दुष्चक्र की पूर्ण एवं सरल व्याख्या का श्रेय प्रोफेसर नकर्स को है!
प्रोफेशन नकर्स के अनुसार एक राष्ट्र इसलिए गरीब है! क्योंकि वह गरीब है! अर्थात
पूंजी के अभाव होने के कारण किसी प्रकार की ऐसी आर्थिक गतिविधियो को संचालित करना
संभव नहीं हो पाता है! जिससे की अर्थव्यवस्था को गरीबी के दुष्चक्र या भवर से बाहर
निकालें जा सके
निर्धन देश की निर्धनता उसके विकास एवं उन्नति में बहुत बड़ी बाधा सिद्ध होती है!
निर्धनता के कारण ऐसे राष्ट्र के सामाजिक ढांचे में ऐसे तत्वों का समावेश करना
संभव नहीं हो पाता है! जिससे की आर्थिक विकास की क्रियाओं को प्रोत्साहित किया जा
सके ऐसे राष्ट्र में ऐसे आधार भूत उद्योगों को अभाव होता है! जिससे कि समस्त
अर्थव्यवस्था की औद्योगिक गतिविधियों को संचालित करना संभव नहीं हो पाता है! इन
अर्थव्यवस्थाओं को कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र बहुत अधिक पिछड़ा होता है! तथा
जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण समस्त जनसंख्या को रोजगार के अवसर प्राप्त
नहीं हो पाते हैं! जिससे लोगों की आय का स्तर कम हो जाता है! तथा उनकी मांग करने
की क्षमता भी कम हो जाती है! इसलिए उद्यमी व्यक्ति भी निवेश करने से हतोसाहित्य
होते हैं! जिससे कि अर्थव्यवस्था गरीबी के जाल में जकडती जाती है!
गरीबी के दुष्चक्र के कारण
गरीबी के दुष्चक्र का मुख्य कारण
विकासशील राष्ट्रों में पूंजी की मांग एवं पूर्ति का अभाव है! इस प्रकार से स्पष्ट
है! कि गरीबी के दुष्चक्र के दो कारक हैं!
1. मांग में कमी अथवा मांग पक्ष
2. पूंजी में कमी अथवा पूंजी पक्ष
1. मांग में कमी
अथवा मांग पक्ष
यह एक विडंबना है! कि विकासशील राष्ट्रों में पूंजी की मांग
सीमित होती है! अल्पविकसित अर्थव्यवस्था पर्याप्त मात्रा में निवेश को प्रोत्साहित
करने में असमर्थ रहती है! जिसके कारण गरीबी का दुष्चक्र किर्याशील रहता है!
इन अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक पिछडेपन के कारण लोगों की
उत्पादकता कम होती है! तथा आय का स्तर भी नीचा रहता है! इसलिए लोगों की क्रयशक्ति
कम होती है! जिसके कारण बाजार का आकार संकुचित/सीमित हो जाता है! सीमित
बाजार के आकार निवेश को प्रेरण नहीं मिलती हैं! निवेश का स्तर कम होने के कारण
पूंजी निर्माण की मात्रा कम हो जाती है! जो आर्थिक पिछडेपन को जन्म देती है!
आर्थिक
पिछड़ापन
कम उत्पादन कम आय पूंजी निर्माण में कमी
क्रय शक्ति
में कमी सीमत बाजार निम्न निवेश का स्तर
निवेश प्रेरणा
की कमी
|
पूर्ति मैं कमी अथवा पूर्ति पक्ष
गरीबी का दुष्चक्र पूर्ति पक्ष के कारण इसलिए उत्पन्न होता है! क्योंकि लोगों
की बचत करने की क्षमता बहुत कम होती है! जब भी अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर निम्न
होता है! तो इसके कारण निवेश के स्तर में कमी हो जाती है! जिससे अर्थव्यवस्था में
पूंजी निर्माण का स्तर भी नीचे हो जाता है! इसके फलस्वरुप आर्थिक पिछड़ापन
अर्थव्यवस्था में ज्यो का त्यो बना रहता है! गरीबी के इस दुष्चक्र को इस प्रकार से
स्पष्ट किया जा सकता है! आर्थिक पिछड़ापन पूंजी की कमी के कारण उत्पादकता का स्तर
निम्न बना रहता है! जिससे के कारण आय का स्तर नीचा हो जाता है! नीची आय के फलस्वरुप
लोगों की बचत करने की क्षमता और इच्छा कम हो जाती है! बचत में कमी निवेश के स्तर
को कम कर देती है! जिसके कारण पूंजी निर्माण की दर कम हो जाती है! और अर्थव्यवस्था
आर्थिक पिछड़ापन के जाल में अथवा गरीबी के दुष्चक्र में फंसी रहती है!
पूंजी
पक्ष काम आय कम उत्पादकता
कम उत्पादकता पूंजी निर्माण में
कमी
कम आय निवेश में
कमी
बचत में कमी
गरीबी के दुष्चक्र को
तोड़ने की आवश्यकता
निर्धनता एक श्राप है! किंतु इससे भी बड़ा अभिशाप यह है! कि यह स्वयं को
चिरस्थाई बनाए रखती है! लेकिन इसका यह अभिप्राय नहीं है! की एक निर्धन देश
अर्थव्यवस्था इस निर्धनता के जिस चक्कर को अपने आप को निकाल नहीं सकती है! हिना
अवस्थाओं को गरीबी के दुष्चक्र के दलदल से निकालने के लिए अर्थव्यवस्था में इस
प्रकार के कार्यक्रमों को लागू करना चाहिए कि जिससे अर्थव्यवस्था के पास ऐसे
संसाधन उपलब्ध हो सके जिससे की अर्थव्यवस्था संभव स्वयं को इस दलदल से उबार सकें
अर्थात विकासशील अर्धविकसित राष्ट्रीय को यह अपना भाग्य नहीं मान लेना चाहिए कि वह
सदैव निर्धन ही बने रहेंगे
गरीबी
के दुष्चक्र को तोड़ने की विचारधारा
अलग-अलग अर्थशास्त्रियों ने गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने के संदर्भ मैं
अलग-अलग विचारधाराएं दिए हैं! लेकिन इन सभी विचार धाराओं को दो भागों में वर्गीकृत
किया जा सकता है!
1.संतुलित विचारधारा
2.असंतुलित विचारधारा
1.संतुलित विचारधारा प्रोफेसर नकर्स के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए संतुलित विकास की अवधारणा का
समर्थन किया है! उनके अनुसार यदि अर्थव्यवस्थाए गरीबी के दुष्चक्र के दलदल से
निकलना है! तो अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में एक साथ पूंजी का निवेश किया जाना
चाहिए क्योंकि जब सभी क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा तो इसके फलस्वरुप सभी
क्षेत्रों में उत्पादित वस्तुओं की मांग में वृद्धि होगी क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र
वस्तुओं की मांग में एक दूसरे के पूरक होते हैं!
प्रोफेसर नकर्स ने इस अवधारणा का इसलिए समर्थन किया है! क्योंकि जब सभी
क्षेत्र विकसित होंगे तभी सभी क्षेत्रों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में
वृद्धि होगी वे इस मत के पक्ष में नहीं थे कि किसी एक क्षेत्र को ही विकसित किया
जाए क्योंकि यह बात ऊट मैं मुंह में जीरे के समान होगी क्योंकि एक क्षेत्र विशेष
ही अर्थव्यवस्था के इस गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने में समर्थन नहीं हो सकता है!
इसलिए एक साथ सभी क्षेत्रों में निवेश किया जाना चाहिए क्योंकि इससे बड़े धक्के का
नियम भी कहा जाता है!
2. असंतुलित विचारधारा
: असंतुलित विचारधारा एक
अन्य और अर्थशास्त्री हर्षमेंन ने संतुलित विकास की अवधारणा से संतुलित नहीं थे
उनके अनुसार संतुलित विकास की अवधारणा से सेद्ध्नतिक तथा व्यापारिक रूप में संभव
नहीं है! क्योंकि इन गरीब के दुष्चक्र मैं फसी हुई अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के
पास अल्पविकसित पूंजी का अभाव होता है! इसलिए अर्थव्यवस्थाओं के लिए संभव नहीं है!
कि एक साथ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में एक साथ निवेश किया जा सके बल्की इन अर्थव्यवस्था
को संतुलित विकास की अवधारणा के आधार पर उन क्षेत्र में प्राथमिकता के आधार पर
निवेश करना चाहिए जिससे कि सरलता से अर्थव्यवस्था को गरीबी के इस दुष्चक्र से
निकाला जा सके
हर्षमेंन ने गरीबी के दुष्चक्र को समाप्त करने के लिए
असंतुलित विकास की अवधारणा का समर्थन किया है! क्योंकि इन अर्थव्यवस्थाओं में
पूंजी की अभाव होता है! इसलिए प्राथमिकता के आधार पर उन क्षेत्रों में ही निवेश के
पक्ष में निर्णय लेने चाहिए जिससे की अर्थव्यवस्था की गरीबी के दुष्चक्र से उबारा
जा सके
प्रशन : एक अर्थव्यवस्था मैं बाजार के
निर्धारक तत्व को स्पष्ट कीजिए
बाजार के आकार के
निर्धारक तत्व
एक अर्थव्यवस्था मैं बाजार का आकार निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है!
1. उत्पादकता : बाजार के आकार का प्रमुख निर्धारिक तत्व
अर्थव्यवस्था में उत्पादकता का स्तर है! जब अर्थव्यवस्था में आय का स्तर नीचा होता
है! तो लोगों की आय का स्तर भी निम्न होता है! जिसके कारण लोगों की क्रय क्षमता कम
हो जाती है! इसलिए यदि बाजार के आकार को विस्तृत करना है! तो अर्थव्यवस्था को
उत्पादकता के स्तर में वृद्धि करनी होगी
2. जनसंख्या का आकार
: एक अर्थव्यवस्था में
वस्तु की मांग अतवा बाजार को भी प्रभावित करता है! यदि अर्थव्यवस्था मैं जनसंख्या
का स्तर ऊंचा है! तो उत्पादित मैं वस्तुओं की मांग भी अधिक होगी क्योंकि जनसंख्या के अधिक होने के कारण
उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है!
3. व्यापार तथा परिवहन
लागत : व्यापार तथा
परिवार लागत के कम होने के कारण वस्तु के बाजार का स्वरूप विस्तृत हो जाता है!
जिसके कारण वस्तुओं की अधिक मांग की जाती है! क्योंकि परिवहन तथा व्यापार लागत
आभाव में वस्तुएं सस्ते मूल्य पर उपलब्ध होती है!
4. मोद्रिक विस्तार
: मुद्रा की मात्रा में
विस्तार केवल उसी दिशा में जब बाजार के आकार में विस्तार का कारक बन सकता है! जबकि
राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि हो रही है! अन्यथा मुद्रा की मात्रा में वृद्धि स्फीतिकारी शक्तियों को जन्म देती है!
5. कीमतों में कमी : कीमतों में गिरावट भी बाजार के आकार को
प्रभावित करती है! क्योंकि जब वस्तुएं सस्ते मूल्य पर उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है!
तो उपभोक्ता है! इनकी अधिक इकाइयों मांग करते हैं!
Kam ka h
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