भारत का विकास /आर्थिक विकास की समस्याए / अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
आर्थिक विकास की समस्याए
प्रशन: एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते है!! इसकी विशेषताए
स्पष्ट कीजिए ?
उतर: अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था
अर्थशास्त्र में अल्पविकस
एक सापेक्ष विचार है! इसका आशय विकास की प्रक्रिया में कमी से है! जब किसी
अर्थव्यवस्था में विकास की दर काफी कम होती है! तो ऐसी अर्थव्यवस्था को अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था कहते है! इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मानवीय संसाधनो का
पूर्ण उपयोग नही हो पता है! जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक व मानवीय संसाधनो का अव्यय
होता है! कृषि क्षेत्र की पमुखता होती है! कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 60% अपनी
आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर और प्रति व्यक्ति उत्पादन का स्तर
काफी नीच होता है! लोगो का जीवन स्तर निम्न कोटि का होता है!
एक अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था के अलग-अलग अर्थशस्त्रियो ने अलग-अलग द्रष्टिकोण से परिभाषित किया हुआ
है! परन्तु इन सभी परिभाषाओं के आधर पर सर्वमान्य परिभाषा दी जा सकती है!
परिभाषा
एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है! जिसमे
जनसंख्या वृदि की दर ऊची है! के प्राकतिक एवं मानवीय संसाधन पर्याप मात्रा में
विद्यमान है! परतु अल्पशोषित है! पूंजी की निर्माण दर नीची है! एक और लोगो का रहन
सहन का स्तर नीची है! लेकिन दूसरी ओर उपलब्ध प्राकतिक मानवीय एवं वित्तीय संसाधन के
उपयोग से निरंतर परिवर्तनशील है!
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (लक्षण)
उपरोक्त
परिभाषा के आधार पर एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित लक्षण होते हैं!
1.
जनसंख्या : एक अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था के प्रमुख लक्षण या विशेषता यह है! कि इन राष्टो ने जनसंख्या की दर
2.2% से लेकर 2.5% तक होती है! अर्थात इन राष्टो ने प्रतिवर्ष जनसंख्या लगभग 2.5%
से बढ़ जाती है! जिसके फल स्वरुप अर्थव्यवस्था से
आधारिक सेवाओं जैसे-रोटी कपड़ा और मकान की अप्राप्ति हो जती है!
2.
निर्धनता : अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था के एक दूसरा प्रमुख विशेषता यह है! कि इन राष्टो में जनसंख्या का
बहुत बड़ा प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करता है! लगभग 22% वर्षों से लेकर
25% तक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती है! जो की अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास
में एक बहुत बड़ा अवरोधक है!
3.
आय का असमान वितरण : अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था में ना केवल निर्धनता या गरीबी व्याप्त होती है! बल्कि आय के वितरण
में भी बहुत अधिक असमानता पाई जाती है! भारतीय अर्थव्यवस्था में जो की अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था है! कुल राष्ट्रीय आय का 60% केवल 250 सौ घरानों के पास है! और शेष
40% आय अन्य जनसंख्याओं के पास है! जोकि
अर्थव्यवस्था में आय का असमान वितरण दर्शाता है!
4.
बेरोजगारी : अधिकांश
अल्पविकसित देशों में व्यापक बेरोजगारी, अल्प बेरोजगारी एवं प्रच्छन्न
बेरोजगारी विद्यमान होती है! इसका प्रमुख कारण यह है! कि इस देशों में पूंजी की
तुलना में श्रमशक्ति बहुत अधिक विद्यमान होती है! जनसंख्या के लगातार बढ़ने के का बेरोजगारी
की समस्या और अधिक जट जटिल हो जाती है! जिसके कारण अर्थव्यवस्था में मानवीय
संसाधनों का अपव्यय होता है!
5.
पिछड़े प्रौद्योगिकी : अल्पविकसित
अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन की परंपरागत या पिछड़े प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया
जाता है! जिसके कारण उत्पादन उत्पादकता का स्तर काफी नीचा होता है! कृषि क्षेत्र
उत्पादन के लिए प्रमुक मुख्यत परंपरागत प्रौद्योगिकी जैसे बेलों से माध्यम से
खेतों की जुताई की जाती है! जिसके कारण कृषि प्रमुख क्षेत्र
में उत्पादकता का स्तर काफी नीचा रह जाता है!
6.
संसाधनो का अपूर्ण उपयोग : अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुरता बहुत विदोहन अधिक
मात्रा होती है! परंतु इसका अपूर्ण विदोहन तथा अल्प उपयोग होता है! उन
अर्थव्यवस्थाओं को या तो या तो वन संसाधनों की पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं होती है!
अथवा पूंजी के अभाव तथा उद्यमशीलता के अभाव के कारण इन संसाधनों का पूर्ण उपयोग
संभव नहीं हो पाता है!
7.
कमजोर प्रशासनिक ढांचा : अल्प विकसित देशों में प्रशासन सैनिक न केवल
कमजोर व आकर अकुशल है! बल्कि भ्रष्ट भी है! अकुशल प्रशासन के कारण दीर्घकालीन आर्थिक
नीतियों को संचालित करना संभव नहीं हो पाता है! कुशल नियंत्रण तथा प्रबंधकीय अकुशलता
के कारण उपलब्ध संसाधनों के द्वारा आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव
नहीं हो पाता है!
8.
कृषि की प्रधानता : अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की प्रधानता होती है! अल्प विकसित देशों में
जनसंख्या 71% भाग गांव में होता है! जहां कृषि ही जीविका का एक प्रमुख साधन है!
कृषि क्षेत्र में लगभग 70 % जनसंख्या
कार्यशील होते हैं! होती है! जिसके कारण भूमि पर लगातार जनसंख्या का भार बढ़ता जा
रहा है! जिसके कारण कृषि उपलब्धता के स्तर में कमी हो गई है!
9.
पूंजी निर्माण के नीचे दर : अल्पविकसित देशों
में पूंजी निर्माण की दर बहुत नीची होती है! पूंजी निर्माण के निम्न दर होने के
कारण अर्थव्यवस्था में निवेश के दर में कमी हो जाती है! जिसके फलस्वरुप उद्यमशीलता
में भी कमी हो जाती है! और अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के दर भी धीमी हो जाती है!
10. विदेशी व्यापार : अल्पविकसित देशों
की राष्ट्रीय आय में विदेशी व्यापार का बहुत कम भार होता है! ये अर्थव्यवस्थाएं
परंपरागत वस्तुओं का निर्यात करती है! जिनकी शेष विश्व में मांग बहुत कम होती है!
जिनके कारण इन राष्टो को विदेशी व्यापार से बहुत कम आय की प्राप्ति होती है!
प्रश्न: आर्थिक
समृद्धि एवं आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं! आर्थिक विकास को प्रभावित करने
वाले कारकों को विशेष स्पष्ट कीजिए ?
आर्थिक समृद्धि और आर्थिक
संवृद्धि
आर्थिक संवृद्धि :
एक मात्रात्मक अवधारणा है! आर्थिक संवृद्धि का आशय उस
प्रक्रिया से है! जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा
प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालीन वृद्धि होती है! इस प्रति व्यक्ति आय में होने
वाली वृद्धि जनसंख्या में बहुत वृद्धि की तुलना में अधिक होनी चाहिए जब
अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालीन वृद्धि होती है! तो इसके फलस्वरुप
लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है! आर्थिक संवृद्धि आर्थिक विकास की अपेक्षा
एक सूक्ष्म अवधारणा है! प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि
आर्थिक संवृद्धि को दर्शाती है! इस आय का विभाजन किस प्रकार से अर्थव्यवस्था में
हो रहा है! इसका आर्थिक संवृद्धि से कोई संबंध नहीं है!
आर्थिक विकास :
एक व्यापक अथवा
गुणात्मक अवधारणा है! जब किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर लोगों के जीवन
स्तर आदि में दीर्घकालीन वृद्धि होती है! तो उसे आर्थिक विकास कहते हैं! आर्थिक
विकास एक प्रक्रिया है! जिसके द्वारा एक देश के उपलब्ध संसाधनों के उत्पादिकता और
उपयोग की दर में सुधार किया जाता है! जिसके परिणाम स्वरूप देश की राष्ट्रीय आय में
और समुदाय के आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है! वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति
व्यक्ति आय में वृद्धि होती है! तो ही अर्थव्यवस्था में लोगों के जीवन स्तर मैं
पहले की तुलना में विकास होता है! इसीलिए आर्थिक संवृद्धि के बिना आर्थिक विकास के
लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नहीं है! इसीलिए आर्थिक संवृद्धि आर्थिक विकास का
आधार है! आर्थिक संवृद्धि के द्वारा ही आर्थिक विकास को प्राप्त किया जा सकता है!
आर्थिक संवृद्धि
तथा आर्थिक विकास में अंतर
आधार आर्थिक संवृद्धि आर्थिक विकास
1.अर्थ: जब किसी
अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन जब किसी
अर्थव्यवस्था में लोगों के
वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति जीवन स्तर में पहले की अपेक्षा
आय मैं वृद्धि होती है! तो इसे आर्थिक अधिक वृद्धि होती है! तो उसे
संवृद्धि कहते हैं! आर्थिक विकास कहते हैं!
2.निर्भरता: अर्थव्यवस्था एक
स्वतंत्र कारक है! क्योंकि आर्थिक विकास
एक निर्भर कारक
यह विकास पर निर्भर नहीं करता है! है! क्योंकि आर्थिक विकास आर्थिक
संवृद्धि
पर निर्भर करता है!
3.अवधारणा: यह एक मात्र आत्म अवधारणा है! यह
एक गुणात्मक अवधारणा है! 4.सूचक: वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति लोगों का जीवन स्तर आर्थिक
आय आर्थिक संवृद्धि का सूचक है! विकास के एक महत्वपूर्ण सूचक है! 5.कीमत:
आर्थिक संवृद्धि का कीमत वृद्धि से
कोई आर्थिक विकास का कीमत वृद्धि से
संबंध नहीं है! संबंध है!
क्योंकि यह वृद्धि से लोगों
का जीवन स्तर नीचा हो जाता है!
6.आय का आर्थिक संवृद्धि
का हाय के आर्थिक विकास के वितरण से
संबंध होता है!
वितरण : वितरण से कोई संबंध नहीं है! क्योंकि आय के असमान वितरण आर्थिक
विकास की
दर को प्रभावित करता है! 7.जनसंख्या
: जनसंख्या में होने वाली वृद्धि जनसंख्या
में होने वाली वृद्धि आर्थिक
आर्थिक
समृद्धि के स्तर को विकास को भी
प्रभावित करती है!
प्रभावित
करती है!
8.सर्वमान्य आर्थिक संवृद्धि सर्वमान्य अवधारणा आर्थिक विकास एक सर्वमान्य
अवधारणा : नहीं है! अवधारणा है!
9.पर्यावरण : आर्थिक संवृद्धि पर्यावरण से प्रभावित पर्यावरण का आर्थिक विकास पर कोई
नहीं होती है! यह राष्ट्रीय आय तथा
प्रभाव होता है! क्योंकि पर्यावरण का
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आर्थिक मानव
जीवन पर प्रभाव पड़ता है!
संवृद्धि
या इ स वृद्धि से पर्यावरण
पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है!
10.संसाधनों राष्ट्रीय आय तथा
प्रति व्यक्ति आय आर्थिक विकास के लिए संसाधनों
का शोषण : में वृद्धि करने के लिए सदैव
संसाधनों का शोषण नहीं किया जाता है!
का शोषण किया जाता है! क्योंकि संसाधनों के शोषण से
जीवन स्तर पर
प्रतिकूल प्रभाव
पड़ता
है!
आर्थिक विकास के कारक
निर्धारक तत्व आर्थिक विकास के तत्व के प्रमुख रूप में तीन भागों में वर्गीकृत
किया जा सकता है!
1).आर्थिक कारक
2). गैरआर्थिक कारक
3). संस्थागत कारक
1) : आर्थिक कारक
आर्थिक विकास को प्रभावित
करके करने वाले निम्नलिखित कारक हैं!
1. प्राकृतिक संसाधन
: प्राकृतिक
संसाधनों से आशय उन पदार्थों से है! जो एक देश की भौगोलिक सीमा में प्रकृति द्वारा
प्रदान किए जाते हैं! इन संसाधनों का उपयोग मानवीय आवश्यकताओं के लिए किया जाता है!
जिस किसी अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक संसाधन बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हैं!
वे अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक विकास के लक्ष्य को सरलता से प्राप्त कर लेती है! उदाहरण
: विश्व के अरब देश इसलिए विकसित हैं! क्योंकि वह बहुत अधिक मात्रा में
पेट्रोल उपलब्ध है!
2. पूंजी निर्माण :
पूंजी से आशय
हुनमान वे निर्माण पदार्थों से है! जिसका उपयोग अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है!
जिस किसी अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण की दर ऊंची होती है! वह अर्थव्यवस्थाए
आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो जाती है! पूंजी निर्माण के
फलस्वरुप ही अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है!
3.तकनीकी विकास : आर्थिक विकास का एक अन्य
महत्वपूर्ण निर्धारण तत्व तकनीकी विकास तकनीकी विकास के द्वारा पूंजीगत वस्तुओं का
उपयोग संभव होता है! जब जब कभी अर्थव्यवस्था मैं अविष्कारों तथा खोजों के द्वारा
नई तकनीकी का आविष्कार होता है! इसके फलस्वरुप अर्थव्यवस्था में कम से कम संसाधनों
साधनों के द्वारा अधिक से अधिक उत्पादन करना संभव होता है!
4. पर्यावरण
: आर्थिक विकास
पर्यावरण से भी प्रभावित होता है! एक अर्थव्यवस्था को आर्थिक विकास के लक्ष्यों को
प्राप्त करने के लिए अपने संसाधनों का किस प्रकार प्रयोग करना चाहिए ताकि पर्यावरण
असंतुलन तथा दूषित न हो जाए उदाहरण : के लिए वन संपदा अधिकार आदि का पूर्ण
अधिकार अविवेकपूर्ण उपयोग नहीं किया जाना चाहिए इसके फल स्वरुप असंतुलन मौसम वर्षा
आदि की संभावना उत्पन्न हो जाती है!
2): गैर आर्थिक कारक
आर्थिक विकास ना केवल आर्थिक कारकों से प्रभावित होता है! बल्कि गैर आर्थिक कारकों पर भी निर्भर करता है! आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले गैर आर्थिक कारक निम्नलिखित है!
1.नव परिवर्तन :नव परिवर्तन को स्वीकार करने की प्रवृत्ति !
आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले एक कारक लोगों का नव परिवर्तन को स्वीकार करने की प्रवृत्ति है! यदि लोग अनुसंधानो तथा नए तकनीकों तथा तरीकों को स्वीकार करने लगते हैं! तभी आर्थिक विकास हो सकता है! क्योंकि नव परिवर्तन प्रोद्योगिकी विकास होता है! जिससे कि उत्पादकता के स्तर मैं वृद्धि होता है!
2.उपभोग की प्रवृत्ति : अल्पविकसित देशों मैं उपभोग का स्तर आय के स्तर के अलावा सामाजिक रीतिरिवाजों तथा परंपराओ परं निर्भर करता है! जिसके कारण लोगों की उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है! और बचत और निवेश के लिए बहुत कम आय उपलब्ध हो पाती है!
3.विज्ञान तथा तकनीकी विकास : किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में विज्ञान तथा तकनीकी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है! विज्ञान तथा तकनीकी के विकास के फलस्वरुप अर्थव्यवस्था में उत्पादन की नई विधियों का विकास होता है! जिसके कारण अर्थव्यवस्था के उत्पादन के स्तर में वृद्धि होती है!
3) : संस्थागत कारक
आर्थिक विकास का स्तर गैर आर्थिक तथा आर्थिक
कारकों के अलावा संस्थागत कारकों पर भी निर्भर करता है! आर्थिक विकास के संस्थागत
कारक निम्नलिखित हैं!
1.
उत्तराधिकार का नियम
एक अर्थव्यवस्था में प्रचलित उत्तराधिकार के नियमो का भी
आर्थिक विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है! यदि लोगों को यह विश्वास हो जाता है!
कि उनकी मृत्यु के उपरांत अर्जित आय व संपत्ति उनके उत्तराधिकारी को प्राप्त हो
जाएगी तो वह अपने जीवन काल में अधिकाधिक परिश्रम करके अधिक संपत्ति व धन एकत्रित
करना चाहेंगे लेकिन इसके कारण उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है! ग्रामीण
क्षेत्रों मैं किसान की मृत्यु होने पर उसकी समस्त भूमि उसके परिवार के सदस्यों
में वितरित कर दी जाती है! जिसके कारण जोतों का आकार छोटा हो जाता है! और के
उत्पादन स्तर में कमी हो जाती है!
2.
धार्मिक तथा
रूढ़िवादी विचारधारा
एक अर्थव्यवस्था के विकास में अर्थव्यवस्था के लोगों की
धार्मिक तथा रूढ़िवादी विचारधारा भी आर्थिक विकास को प्रभावित करती है! रुढ़िवादी
ऐसी आस्थाओं को जन्म देती है! जो की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर में वृद्धि
करने में अवरोध होते है!
3.
संयुक्त परिवार
प्रणाली
एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में सयुक्त
कुटुंब प्रणाली भी आर्थिक विकास को प्रभावित
करती है! संयुक्त कुटुंब प्रणाली आर्थिक विकास
को हतोत्साहित करती है! क्योंकि संयुक्त कुटुंब
प्रणाली मैं परिवार के सदस्यों की आवश्यकतों
अन्य परिवार के सदस्यों की अपेक्षा पूरी हो
जाती
है! जिसके कारण उत्पादन में इनका का कोई योगदान नहीं होता है! परंतु उनका उपभोग
में
योगदान होता है! जिसके कारण खाद्य वस्तुओं की अपर्याप्तता हो जाती है!
thanks for
ReplyDeleteThank you
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