विकास केसे करे ?/आर्थिक संवृद्धि की समस्याएं?

                               आर्थिक संवृद्धि की समस्याएं
                       
प्रशन : संतुलित विकास तथा असंतुलित विकास की विचारधारा को स्पष्ट कीजिए अल्पविकसित देश के लिए आप किस पद्धति का समर्थन करेंगे                       
उतर :                              आर्थिक विकास
आज विश्व कि सभी अर्थव्यवस्थाए आर्थिक विकास के होड़ में एक दूसरे को पीछे छोड़ना चाहती हैं! अल्पविकसित राष्ट्र गरीबी के दुष्चक्र मैं   जकड़े हुए हैं! इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए पूंजी की मांग एवं पूर्ति में वृद्धि करनी अनिवार्य है! निवेश की मात्रा में के संबंध मैं विकास सिद्धांत के रूप में अनेक अर्थशास्त्रियों ने अनेक अवधारणाएं प्रस्तुत की है! जो प्रोफेसर रोजेस्टीन रोदन द्वारा प्रतिपादित प्रबल परयास सिद्धांत तथा प्रोफेसर हार्वे लीबनस्टीन द्वारा प्रतिपादित निश्चित न्यूनतम प्रयत्न सिद्धांत है! इन सभी सिद्धांतों के आधार पर आर्थिक विकास से संबंधित निम्नलिखित दो अवधारणाएं
1.संतुलित विकास
2.असंतुलित विकास                        

संतुलित विकास का अर्थ      
संतुलित विकास कार्यक्रम                       
संतुलित विकास कार्यक्रम में निम्नलिखित बातें सम्मिलित है!                       
1.       हल्के उपभोक्ता वस्तु उद्योगों का विकास : प्रोफेसर रोजस्टीन रोदान ने संतुलित विकास प्रोग्राम बहुत ही सीमित आकार पर अपनाने का सुझाव दिया है! उन्होंने केवल हल्के उपभोक्ता वस्तु उद्योगों को आवश्यक माना है!                        
2.       उद्योग तथा कृषि मैं संतुलन : संतुलित विकास कार्यक्रम में यह अनुभव किया गया है! कि कृषि और उद्योग एक दूसरे के पूरक हैं! इसलिए दोनों के विकास से ही आर्थिक पिछड़ापन दूर किया जा सकता है!                       
3.       सार्वजनिक सेवाओं का विकास : अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में यातायात तथा संदेश वाहन के साधनो तथा शक्ति के साधनो का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है! इसलिए इन सार्वजनिक सेवाओं मे विकास को प्राथमिकता दी जाती दी जानी चाहिए                       
संतुलित विकास की समस्याएं
1         सरकारी निर्देशन : संतुलित विकास के लिए प्रोफेशन नकर्स ने सरकारी निर्देशन को आवश्यक नहीं माना है! किंतु वास्तविकता यह है! कि अल्पविकसित राष्ट्रों में संतुलित विकास निजी उद्यम कर्ताओं द्वारा संभव नहीं है!                       
2         कृषि तथा उद्योग के विकास में संतुलन की समस्याएं समस्या : अल्पविकसित राष्ट्रों में उद्योगिक विकास लाने के लिए आवश्यक होता है! कि कृषि व उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में विकास किया जाए क्योंकि कृषि उद्योग क्षेत्र को कच्चा माल उपलब्ध करती है!                       
3         भारी एवं हल्के उद्योगों में संतुलन की समस्या : भारी उद्योगों के विकास से देश की अधिक उत्पादन क्षमता का विकास होता है! किंतु हल्के उद्योगों की उपेक्षा करने से देश में उपभोक्ता वस्तुए की उत्पादकता का स्तर निम्न हो जाता है!                       
                                  संतुलित विकास की आलोचनाएं                       
                 संतुलित विकास की निम्न आधारों पर आलोचना की गई है!                       
1.       लागत पक्ष की उपेक्षा : संतुलित विकास सिद्धांत में लागत पक्ष को पूर्ण रूप से अनदेखा कर दिया है! क्योंकि एक साथअर्थव्यवस्थाए के सभी क्षेत्रों में निवेश करने से निवेश लागत बहुत अधिक हो जाएगी                       
2.       साधनों की बेलोचपूर्ति : संतुलित विकास का सिद्धांत साधनों की लोचदार पुर्ति पर आधारित है! परंतु वास्तव में किसी भी अर्थव्यवस्था में संसाधनों की पूर्ति बेलोचदार होती है! जिसके कारण इन संसाधनों का सभी जगहों पर उपयोग नहीं किया जा सकता है!                       
3.       उत्पादन के साधनों में अनुपातिकता का अभाव : संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है! कि उत्पादन के विभिन्न साधन देश में समान अनुपात में उपलब्ध हो परंतु व्यवहारिक जीवन में ऐसा नहीं होता है!                        
असंतुलित विकास
असंतुलित विकास के गुण
असंतुलित विकास के निम्नलिखित गुण है!                       
1.       कम समय में आर्थिक विकास : सर्वप्रथम बड़े उद्योगो को महत्व प्रदान किया जाता है! जिसके कारण अन्य उद्योगों का स्वयं ही विकास हो जाता है! जिससे कम समय में अधिक से अधिक विकास हो पाता है!                       
2.       औद्योगिक विकास : असंतुलित विकास की अवधारणा में सर्वप्रथम आधारभूत उद्योगों को प्रधानता दी जाती है! जिससे के कारण अर्थव्यवस्था में औद्योगिक विकास करना संभव हो पाता है!                       
3.       उपभोक्ता प्रधान उद्योगो का विकास : आधारभूत और विशाल उद्योगो की स्थापना से अर्थव्यवस्था में उद्योगों उपभोगता वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होती है!                       
असंतुलित विकास के दोष
इस सिद्धांत के निम्नलिखित दोष है!                       
1.       स्फीतिकारी दबाव : असंतुलित विकास के दौरान अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जब भारी मात्रा में निवेश किया जाता है! तो इसके फलस्वरुप उपभोक्ता वस्तुओं की मांग मैं अधिक वृद्धि होती है! जिससे स्फीति का जन्म होता है!                        
2.       अपव्यय में वृद्धि :  इस पद्धति के अनुसार कुछ ही क्षेत्रों में अत्यधिक विकास किया जाता है! जिससे उनमें अधिक अपव्यय होने की संभावना होती है!                       
संतुलन तथा असंतुलन असंतुलित विकास की तुलना

अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के लिए संतुलित तथा असंतुलित विकास के माध्यम से आर्थिक विकास की प्रक्रिया को संचालित किया जा सकता है! परंतु अल्पविकसित राष्ट्रों में पूंजी का अभाव पाया जाता है! इसलिए अल्पविकसित राष्ट्रो के लिए असंतुलित विकास की विचारधारा के द्वारा आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना उचित होगा क्योंकि पूंजी के अभाव के कारण सभी क्षेत्रों में निवेश करना संभव नहीं है! इसलिए सभी अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक विकास के असंतुलित विकास की अवधारणा को प्रयोग करते हैं!                        

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