प्रदर्शनकारी प्रभाव और भारत में प्रच्छन्न बेरोजगारी/बेरोजगारी के प्रकार /रोजगारी के उपाए
प्रदर्शनकारी प्रभाव
प्रशन : उपभोग पर प्रदर्शनकारी प्रभाव को स्पष्ट कीजिए निर्धन देशों के आर्थिक
विकास में यह कैसे सहायक है!
प्रदर्शनकारी प्रभाव
आज वर्तमान समय में विश्व
की सभी अर्थव्यवस्था है! खुली हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं! अर्थात ये अर्थव्यवस्थाएं
एक दूसरे को निर्यात तथा आयात करती है! अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाए जब विकसित
अर्थव्यवस्थाओं के सम्मुख आती है! तो विकसित अर्थव्यवस्थाओं के उपभोग का प्रभाव अल्पविकसित
अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ता है! जिसे प्रदर्शनकारी प्रभाव कहते हैं! इसको केन्स ने
उपभोग के रूप मैं मनोवैज्ञानिक भी परिभाषित किया था अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओ यह
प्रदर्शनकारी प्रभाव निरपेक्ष या सापेक्ष में हो सकता है! सापेक्ष आय प्रभाव उस
समय उत्पन्न होता है! जब अल्पविकसित अर्थव्यवस्था विकसित अर्थव्यवस्थाओं के अनुसार
अपने उपभोग के स्तर में परिवर्तन लाते हैं! और निरपेक्ष प्रदर्शनकारी प्रभाव मैं अल्पविकसित
अर्थव्यवस्थाएं विकसित अर्थव्यवस्थाओं के अनुसार में वृद्धि करके अपने उपभोग के
स्तर में परिवर्तन लाती हैं!
इस
सिद्धांत को लोकप्रिय बनाने के बनाने का श्रेय जेम्स-यूजनबरी को है! उन्हीं के नाम
पर इसको द यूजनबरी प्रभाव अथवा प्रदर्शनकारी प्रभाव भी कहते हैं!
प्रदर्शनकारी
प्रभाव के परिणाम
प्रदर्शनकारी प्रभाव के परिणाम निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं!
1.
घातक परिणाम
2.
लाभदायक
परिणाम
1.
घातक परिणाम
एक अर्थव्यवस्था के प्रदर्शनकारी प्रभाव के नियम घातक परिणाम होते हैं!
1.
बचत पर प्रतिकूल
प्रभाव : प्रदर्शनकारी प्रभाव का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव
होता है! क्योंकि प्रदर्शनकारी प्रभाव परिणाम स्वरुप लोग अपने उपभोग के स्तर में
वृद्धि लाते हैं! जिसके कारण लोगों की मुख्यत आय उपभोग पर व्यय हो जाती है! जिसके
कारण अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर नीचा हो जाता है! और अर्थव्यवस्था में पूंजी
निर्माण की दर निम्न हो जाती है! जिससे अर्थव्यवस्था का विकास अवरोध हो जाती है!
हो जाता है!
2.
भुगतान शेष पर
प्रतिकूल प्रभाव : प्रदर्शनकारी प्रभाव के फलस्वरुप विदेशों से
वस्तुओं के आयत में वृद्धि हो जाती है! परंतु इन अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के
द्वारा शेष विश्व को निर्यात नहीं किया जाता है! जिसके कारण अर्थव्यवस्था के सम्मुख
प्रतिकूल भुगतान शेष की समस्या उत्पन्न हो जाती है!
3.
सांस्कृतिक पर
प्रतिकूल प्रभाव : प्रदर्शनकारी प्रभाव के फलस्वरुप विदेशी
संस्कृतियां भी अर्थव्यवस्था मैं आ जाती है! जिसके कारण उस अर्थव्यवस्था की अपनी
संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है!
लाभदायक परिणाम
1.
तकनीकी विकास : जब एक अर्थव्यवस्था
दूसरी अर्थव्यवस्था के सम्मुख आती है! तो इसके फलस्वरुप विकसित अर्थव्यवस्था में
प्रयुक्त की जाने वाली तकनीकी का उपयोग अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा किया
जाता है! अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन की मात्रा तथा गुणवत्ता मैं सुधार
होता है!
2.
अधिक कार्य की
प्रेरणा : प्रदर्शनकारी प्रभाव के फलस्वरुप लोगों को अपनी
आवश्यक्ताओं को पूरा करने हेतु अधिका आय की आवश्यकता होती है! जिसके कारण लोग अधिक
कार्य को करने के लिए प्रेरित होते हैं!
आर्थिक विकास मैं प्रदर्शनकारी प्रभाव
अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएं प्रदर्शनकारी प्रभाव के फलस्वरुप विकास
अर्थव्यवस्थाओं के सम्मुख आती है! जिसके कारण अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में नई-नई
तकनीकों तथा खोजो का विकास होता है! जिससे उत्पादन के स्तर में वृद्धि होती है!
तथा विदेशी व्यक्ति भी लाभ की भावना से प्रेरित होकर इन अर्थव्यवस्थाओं में निवेश
करते हैं! जिसके कारण इन अर्थव्यवस्थाओ में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है!
और इसके फलस्वरूप यह अर्थव्यवस्थाएं गरीबी के दुष्चक्र से उभार पाती हैं! तथा
आर्थिक विकास के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम हो पाती है!
प्रच्छन्न बेरोजगारी
प्रशन : बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं! इसके प्रमुख इसके प्रकारों को स्पष्ट
करते हुए इस समस्या को हल करने के लिए सुझाव दीजिए
बेरोजगारी
उतर : भारत जैसे अल्प विकसित अर्थव्यवस्था जैसे
जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.98% प्रतिवर्ष बढ़ती है! उसमें बेरोजगारी जैसी समस्या का
उत्पन्न होना संभावित है! भारत में गरीबी के दुष्चक्र तथा जनसंख्या में लगातार
वृद्धि होने के कारण बेरोजगारी एक जटिल रूप धारण कर चुकी है! बेरोजगारी के
फलस्वरुप अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों का अपव्यय होता है!
बेरोजगारी
से अभिप्राय उस स्थिति से है! जब व्यक्ति जिस में कार्य करने की योग्यता है! तथा
वर्तमान दर पर कार्य करने का इच्छुक है! परंतु उस कार्य की प्राप्ति नहीं होती है!
उसे बेरोजगार कहते हैं! अर्थात एक व्यक्ति उस स्थिति में ही बेरोजगार कहा जाता है!
जब वह वर्तमान दर पर कार्य करने का इच्छुक है! परंतु उसे कार्य की प्राप्ति नहीं
होती है!
प्रच्छन्न
बेरोजगारी
अल्पविकसित देशों में विभिन्न
प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है! लेकिन इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रच्छन्न
बेरोजगारी है! प्रच्छन्न बेरोजगारी के प्रचार विचार प्रतिपादन सर्वप्रथम श्रीमती जॉन
रॉबिंसन ने किया था श्रीमती जॉन रॉबिंसन के अनुसार प्रच्छन्न बेरोजगारी को इस
प्रकार से परिभाषित किया गया है!
अवसाद (मंदी) के समय में प्रभावपूर्ण मांग के
अभाव में श्रमिकों को उनकी योग्यता के विपरीत निकुष्ट रोजगारी में धकेल दिया जाता है!
इसी को प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं!
उपरोक्त जॉन रॉबिंसन की
परिभाषा प्रोफेसर नकर्स सहमत नहीं थे इसीलिए उन्होंने प्रच्छन्न बेरोजगारी को एक
नए रूप में परिभाषित किया प्रोफेसर नकर्स के अनुसार प्रछन्न बेरोजगारी से आशय उस
स्थिति से है! जब व्यवसाय (कृषि) में लगे हुए व्यक्तियों को यदि हटा दिया जाए फिर
भी उत्पादकता के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है! तो इसे प्रछन्न बेरोजगारी कहते
हैं!
प्रछन्न बेरोजगारी की विशेषताएं
प्रोफेशन नकर्स की प्रछन्न बेरोजगारी
की विचारधारा में निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगत होती है!
1.
श्रम की सीमित
उत्पादकता शून्य : प्रछन्न बेरोजगारी में श्रमिक की सीमित उत्पादकता
शून्य होती है! अर्थात यदि श्रमिक को उस कार्य विशेष से हटाकर दूसरे कार्य में लगा
दिया जाए तो उत्पादन के स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होगा
2.
यह बेरोजगारी
देशभक्ति दृष्टिगत नहीं : प्रछन्न बेरोजगारी को छिपी बेरोजगारी भी कहते हैं!
क्योंकि इसमें व्यक्ति ऊपर से तो उत्पादन / रोजगार में लगा हुआ दिखाई देता है!
परंतु वास्तव में उसकी कोई आवश्यकता नहीं होती है! अर्थात वह एक प्रकार से
अतिरिक्त श्रमिक है! जो कि उस कार्य विशेष में अपनी सेवा प्रदान करता है!
3.
परिवार के
सदस्यों पर लागू : प्रछन्न बेरोजगारी केवल पारिवारिक
अर्थव्यवस्थाओं में ही क्रियाशील होती है! क्योंकि यदि परिवार के सदस्यों को कहीं
पर कार्य की प्राप्ति नहीं होती है! तो वह परिवारक व्यवसाय में ही लग जाते हैं!
जहां उसकी कोई आवश्यकता नहीं है!
4.
मौसमी बेरोजगारी
से भिन्न : प्रछन्न बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी से
भिन्न तथा प्रथक है! क्योंकि मौसमी बेरोजगारी एक अल्पकालीन अवधारणा है! जबकि प्रछन्न
बेरोजगारी एक दीर्घकालिक अवधारणा है!
बेरोजगारी को दूर करने के उपाय
बेरोजगारी किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक अभिशाप है! इसलिए बेरोजगारी की
समस्या को दूर करने के लिए निम्न उपाय किए जाने चाहिए
1.
तकनीकी शिक्षा का
विकास : भारत जैसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं को तकनीकी
शिक्षा का पूर्ण अभाव पाया जाता है! जिसके कारण व्यक्ति अपना किसी प्रकार का
व्यवसाय प्रारंभ करने मैं सक्षम नहीं होते हैं! इसीलिए यदि उन्हें अपना स्वयं का
रोजगार प्रारंभ करने के लिए प्रेरित करना है! तो उन्हें तकनीकी शिक्षा प्रदान की
जानी चाहिए
2.
जनसंख्या पर
नियंत्रण : बेरोजगारी की समस्या का महत्वपूर्ण कारण तेजी
से बढ़ती हुई जनसंख्या है! तीव्र से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण बेरोजगारी के स्तर
में लगातार वृद्धि हो जाती है! इसलिए सरकार को परिवार नियोजन संबंधित कार्यक्रमों
को प्रारंभ करना चाहिए जिससे कि जनसंख्या पर नियंत्रण रखा जा सके
3.
लघु उद्योगों की
स्थापना : लघु तथा कुटीर उद्योगों में उत्पादन की श्रम
प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाता है! जिसके कारण रोजगार की संभावना अधिक उत्पन्न
हो जाती है! इसलिए सरकार को लघु तथा कुटीर उद्योगों कि स्थापना को प्राथमिकता देनी
चाहिए
4.
औद्योगिक विकास : कृषि क्षेत्र मैं लगातार जनसंख्या के भार के कारण रोजगार की संभावनाएं कम होती
जा रही हैं! इसलिए सरकार को पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता
दी जानी चाहिए जिससे कि अधिक से अधिक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की जा सके तथा रोजगार
के अवसरों में वृद्धि की जा सके
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