राजनीति में समाज सेवा के नाम?
एक बात मुझे समझ नहीं आती
लोग आते तो हैं राजनीति में समाज सेवा के नाम पर लेकिन फिर क्यों मेव खाने लग जाते हैं यह राजनीति का मेवा सेवा-सेवा करते घोटाले-पर-घोटाला करें
अपने बीवी बच्चों के नाम पर झूठा रजिस्ट्रेशन करें कब्रिस्तान की मिट्टी हो या
मरने वाले का कफन उसमें भी यह कमीशन खाने से मना नहीं करेंगे पहले सरहदों पर लड़ते हुए
जवान गोली खाकर शहीद हो जाते थे! लेकिन आज खाना ना मिला तो यह भूखमरी से मर जाएंगे राशन
सारा दबाके इन्होंने पीला पानी पहुंचाया है खाने के लिए सूखी रोटी और नमक भिजवाया
है जब कोई आवाज़ उठाएं तब वह जूता साफ पॉलिश करते हुए नजर आया है पोलिस-पोलिस करते-करते उस जवान को यह समझ आया है सरहद पर तो हम हैं लड़ते लेकिन अंदर से
कौन लड़ कर आया है जब-जब आवाज उठा हूं मैं तब तब मुझे दबाया है छात्र हो या कोई
शिक्षक कुछ समय के लिए हर कोई थोड़ा-थोड़ा काम आया है लेकिन जब कोई मरता है तभी
सरकार को क्यों समझ आया है जाऊं मैं हार ना जाऊं
कहीं इस जंग में बस सारी तो यह पैसों की एक माया है अगर किसी को बुरी लग जाए यह
बात तो अपने सवाल पूछने के लिए अपने पास के MLA,MP या किसी बड़े विधायक के
पास जाकर यह सवाल पूछो कि तुमको क्या समझ आया है
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